उत्तराखंड, प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण भारत का एक राज्य है जिसे देवभूमि भी कहा जाता है | ये राज्य हिमालय के पहाड़ों और चोटियों से घिरा हुआ है , इन्हीं पहाड़ों पर अनेकों हिन्दू तीर्थ स्थल स्थापित है और इन्हीं पहाड़ियों के कंदराओं से गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम होता है यही कारण है उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से जाना जाता है |
उत्तराखंड का नाम लेने के साथ ही इसमें चारधाम यात्रा का भी नाम जुड़ जाता है जो हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है | हिन्दू धर्म ग्रंथो में यह कहा गया है की जो ये चारधाम यात्रा कर लेता है वह अपने सारे पापों से मुक्त हो जाता है | चारधाम की यात्रा पर हर साल लाखो श्रद्धालु उत्तराखंड आते है |
भारत में चार धाम यात्रा का मतलब है आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित वे चार मंदिर जिसे हम बद्रीनाथ (उत्तराखंड), जगन्नाथपुरी (उड़ीसा ), द्वारकापुरी (गुजरात), और रामेश्वरम (तमिलनाडु), के नाम से जानते है | बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री को उत्तर भारत का चार धाम यात्रा के नाम से जाना जाता है| इसे छोटा चारधाम भी कहा जाता है, ऐसा माना जाता है की जो भी श्रद्धालु दर्शन के लिए यहाँ आते है उन्हें चारों मंदिरों का दर्शन करना आवश्यक है तभी यात्रा पूर्ण मानी जाती है |
छोटा चार धाम यात्रा
ऐसा माना जाता है की जो लोग भारत की चार धाम यात्रा पर निकलते है और जब वो बदरीनाथ के दर्शन के लिए उत्तराखंड पहुँचते है तो उन्हें बदरीनाथ के दर्शन से पहले बाकी तीन मंदिरों के दर्शन करना आवश्यक होता है ऐसा न होने पर पूरी यात्रा को अपूर्ण माना जाता है |
यह मंदिर हिमालय रेंज में स्थित है जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 4000 मीटर से भी ज्यादा है, हिमालय की यह पहाड़ियां सबसे दुर्गम मानी जाती है यहाँ की चढ़ाई बहुत कठिन है फिर भी हर वर्ष यहाँ दो से तीन लाख लोग दर्शन करने आते है |
चारधाम की यात्रा में यमुनोत्री( यमुना का उद्गम स्थल ), गंगोत्री(गंगा का उद्गम स्थल ), केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिर आते है | ये चारों मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले स्थित है |
यात्रा का प्रारम्भ एक परम्परागत तरीके से हरिद्वार से शुरू होता है फिर ऋषिकेश , देवप्रयाग , टिहरी, धरासू , यमुनोत्री, उत्तरकाशी, गंगोत्री, त्रियुगीनारायण, गौरीकुंड, केदारनाथ होते हुए सबसे अंत में बदरीनाथ मंदिर में दर्शन के साथ समाप्त होता है |
केदारनाथ जाने के लिए एक दूसरे रास्ता भी है जो ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्त्यमुनि, गुप्तकाशी और गौरीकुंड हो कर जाता है | चारधाम की यात्रा का प्रारम्भ हर वर्ष अप्रैल से मई के बीच में शुरू होती है और नवम्बर तक चलती है | बारिश के मौसम में यहाँ यात्रा थोड़ी कम हो जाती है क्योंकि भूस्खलन होने रस्ते बाधित हो जाते है |
इस यात्रा में इन मंदिरों के अलावा और भी कई मंदिर रास्ते में पड़ते है जिसमे तुंगनाथ का मंदिर, मद्महेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर कालीमठ, विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, नारायण मंदिर, भविष्यबद्री मंदिर, नरसिंघ मंदिर इत्यादि आते है |
उत्तराखंड में चार धाम यात्रा करने के लिए लोग बस या कार से जाते है यहाँ तक जाने के लिए ट्रेन की सुविधा नहीं है ट्रेन सिर्फ ऋषिकेश तक जाती है | उसके बाद बस और कार से आगे की यात्रा करनी पड़ती है | यहाँ हेलीकाप्टर से भी मंदिर तक जाने की सुविधा है |
दिल्ली से हरिद्वार की दुरी 210 km है , जिन लोगों की चार धाम जाना होता है पहले वो हरिद्वार जाते है फिर वहा से आगे की यात्रा शुरू करते है , हरिद्वार और ऋषिकेश से आगे तक जाने के लिए प्राइवेट और गवर्नमेंट बसों की अच्छी सुविधा है | चारधाम यात्रा के दौरान पैदल यात्रा भी करनी पड़ती है जिसके लिए खच्चर , घोड़ा, पिठू आदि की सुविधा होती है |
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