गंगा भारत की की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है, गंगा को भारत में जीवनदायनी नदी कहा जाता है क्योकि इसके उदगम स्थल से लेकर इसके समुद्र में मिलने तक यानि की गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक भारत की एक घनी आबादी निवास करती है जिनके लिए गंगा जल या पानी के रूप में एक सहारा है गंगा नदी की अपनी इए पूरी यात्रा की दूरी 2525 किमी है| गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले से 200 किमी की दूरी पर स्थित है, गंगा का उद्गम स्थल को गौमुख कहते है यह गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित है, गौमुख गंगोत्री मंदिर से 18 किमी की दूरी पर थोड़ी ऊंचाई पर स्थित है | गंगोत्री उत्तराखंड के एक बेहद ही ख़ूबसूरत जगह पर स्थित है यह मंदिर चारो तरफ से हिमालय की पहाड़ियों से घिरा हुआ है इसीलिए यहाँ हिमालय में पाये जाने वाले पेड़-पौधों की बड़ी संख्या है| यहाँ बलूत, बुरांश, सफ़ेद सरो, तथा नील देवदार आदि की भरमार है यह पेड़ यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता को और बढ़ा देते है |
हिन्दू धर्म ग्रंथो में गंगा का उल्लेख
पुराणों के अनुसार गंगा ब्रह्मा की पुत्री थी, पृथ्वी पर गंगा के आने की एक कथा पुराणों में मिलती है जिसके अनुसार राजा सगर अपने 60 हजार पुत्रों के साथ अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, इस यज्ञ को पूर्ण करने क लिए एक घोड़े को छोड़ दिया गया जिसे यज्ञ समाप्त होने तक वापिस आना था, देवताओं के राजा इंद्र को यह डर था अगर यह यज्ञ पूर्ण हुआ तो उनका सिहासन छीन जायेगा इसलिय यज्ञ में बाधा डालने क लिए उन्होंने राजा के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया, जब राजा के सभी पुत्र घोड़े को खोजते हुए यहाँ तक पहुँचे और उसे ऋषि के आश्रम में बंधा हुआ पाया तो उन्होंने आश्रम को तहस नहस करना शुरू कर दिया कपिल मुनि इन सभी बातों से अनजान अपनी तपस्या में लीन थे जब उनका ध्यान भंग हुआ और उन्होंने अपने आश्रम को देखा तब उन्होंने सगर के 60 हजार पुत्रों को भस्म हो जाने का श्राप दिया | सगर के सभी पुत्रों की राख वहीँ पड़ी रही, सागर ने अपने पुत्रों की आत्मा और उनके पाप से मुक्ति के लिए बहुत आराधना की लेकिन सफल नहीं हुए|
सागर के वंशज भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए देवी गंगा की आराधना की और उन्हें धरती पर लाने के लिए सेकड़ों वर्ष कठोर तप किया उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा पृथ्वी पर आने को तैयार हुई लेकिन गंगा का वेग इतना तेज था की वो अपने साथ सबको बहा ले जाती, इसी अनर्थ के डर से भागीरथ ने शिव की आराधना की और उनसे प्राथना की वह गंगा वेग को संभाले इसिलए भगवान् शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया और एक जटा खोली जिसे गंगा का प्रवाह हो इस तरह भागीरथ के पूर्वजों को अपने पापों और आत्मा से मुक्ति गंगा के पवित्र जल द्वारा हुआ | पुराणों के अनुसार गंगा का जल को अगर को कोई प्राणी छु भी लेगा तो उसे अपने सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी| महाभारत में गंगा को महाराजा शांतनु की पत्नी और भीष्म की माँ कहा गया है |
गंगोत्री मंदिर और महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
गोमुख | source: Wikimedia Commons
गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18 वीं सदी में हुआ था इसका निर्माण एक गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने की थी | पहले यहाँ सिर्फ मूर्ति रख के पूजा होती थी गंगोत्री एक पूरा गाँव है इसका इतिहास सेकड़ों साल पुराना है | पहले यहाँ सिर्फ पैदल यात्रा की जा सकती थी लेकिन 1970 के बाद यहाँ पक्की सडक का निर्माण शुरु हुआ 80 के दशक तक वहां गाड़ियों का आना जाना शुरू हो गया | गंगोत्री मंदिर सफेद ग्रेनाईट से निर्मित है | मंदिर के अन्दर माँ गंगा की सोने की मूर्ति स्थापित है | पुराणों के अनुसार गंगोत्री में ही कपिल मुनि का आश्रम था |
गौमुख या गोमुख
गौमुख वह स्थान है जहाँ से गंगा का उद्गम स्रोत है यह गंगोत्री ग्लेशियर के पास स्थित है यह मंदिर से 18 किमी दूर स्थित है, यहाँ की चढ़ाई मुश्किल है लेकिन यात्री यहाँ भी जाते है | ट्रेकिंग करने वालों के लिए यह जगह पसंदीदा है |
मुखबा गाँव
शीत ऋतू में माँ गंगा की मूर्ति को इसी गाँव में पुरे धूम धाम से लाया जाता है और बसंत ऋतू तक उन्हें यही रख कर पूजा की जाती है बसंत ऋतू के अंत तक जब गंगोत्री के बर्फ पिघल जाते है तब गंगोत्री मंदिर में मूर्ति को उसी धूम धाम से ले जाया जाता है | इस गाँव की दूरी गंगोत्री से 25 किमी के आस पास है |
गंगोत्री के अन्य दर्शनीय स्थल –
भोजबासा और चिरबासा
यह दोनों ही जगह ट्रेकिंग के लिए बहुत प्रसिद्ध है, भोजबासा में भोजपत्र के पेड़ो की बहुत अधिकता है और चिरबासा में चीड़ के पेड़ों की | ये दोनों ही जगह गंगोत्री से क्रमशः 14 किमी और 9 किमी की दूरी पर स्थित है |
केदारताल
यह गंगोत्री से 14 किमी की दूरी पर स्थित है , यह जगह भी ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है| केदारताल एक बहुत खूबसूरत झील है यही थल सागर चोटी भी स्थित है |
नंदनवन तपोवन
यह जगह सिर्फ ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है, यह गंगोत्री ग्लेशियर से 25 किमी की दूरी पर स्थित है |
हर्षिल और भैरोघाटी
हर्षिल एक बहेद सुन्दर जगह है, हर्षिल अपने सेब के लिए विश्वप्रसिद्ध है यह जगह गंगोत्री से 20 किमी की दूरी पर स्थित है | जब तक गंगोत्री जाने के लिए पक्की सड़कों का निर्माण नहीं हुआ था तब तक यात्री भैरोंघाटी से पैदल यात्रा करके गंगोत्री तक जाते थे गंगोत्री से यह 9 किमी दूर है |
गंगोत्री मंदिर का कपाट हर वर्ष अप्रैल से मई के बीच में अक्षय तृतीय के दिन खुलता है, और दिवाली तक बंद हो जाता है | गंगोत्री जाने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, से बस और गाड़ियो की अच्छी सुविधा है , यहाँ तक जाने के लिए हैलीकॉप्टर की भी सुविधा है, सबसे नजदीक हैलीपैड जौलीग्रांट है| ट्रेन की सुविधा हरिद्वार और ऋषिकेश तक है, दिल्ली से गंगोत्री की दूरी 498 किमी है, दिल्ली से हरिद्वार और ऋषिकेश जाने के लिए बस और ट्रेन दोनों की अच्छी सुविधा है |
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